Thursday, November 1, 2012

उम्मीदें


उम्मीदें हैं रिश्तों से.......

उम्मीद है की कल बेहतर होगा.

लेकिन यह उम्मीद है क्या?

रिश्तों की दुनिया में हाथ में पकड़ा एक कटोरा..

जो दे उसका भला .. जो न दे उसका बुरा...?

इस कटोरे को किसी नदी के पात्र में बहा दो बंधू..

उम्मीद रिश्तों में ज़हर है...

रिश्ते बिना किसी उम्मीद के .. सहर है,

Friday, April 8, 2011

एक पडौसी की बीबी की मौत.

मौत सब से funny हादसा है.

सब से अनिश्चित …

मुझे scenes लिख कर भेजने हैं.

हर दिन का अपना बोझ होता है.

मैं office जा रहा हूँ.

और कमबख्त, बेवक्त watchman कहता है.

“१२ माले के काका की wife को attack आया . वो off हो गयी.”

मैं सोचता हूँ. Scenes लिख लूं.

वैसे भी ऊपर जाकर मुझे कौन से दिए जलाना है.

वो आज मरी बुढ़िया.

मैं बरसों पहले मर चूका हूँ .

………

हम शाम तक राह तकते हैं.
अपना -अपना काम ख़त्म कर ….
उनके घर पहुँचते हैं …
…….

मैं सुनता हूँ , देखता हूँ, सोचता हूँ.
आदमी .. और औरत … २५ -३० बरस साथ रहते हैं ..
क्यों , पता नहीं?
फिर एक मर जाता है.
जो बचता है …
वो आखरी साँसों की दास्तान आने वाले हर एक से कहता है.
“२ बजे तक ठीक थी .. खाना खाया . और फिर ..”
वो जो कहता है आधा सच होता है.
आदमी अपनी पत्नी की मौत के बारे में भी आधा झूठ ही कहता है?
आने वाले हर एक से वही बात
वो आदमी , उसका बेटा , उसकी बहू सब दोहराते हैं .
आने वाले का खूब ध्यान रखते हैं.
कोई घर से बिना “कहानी” सुने न जाए
वो भरसक कोशिश करते हैं.
मैं उस कहानी को सुनते - सुनते … सोचता हूँ ..

काश मेरे बाप की उम्र का यह आदमी मुझे एक थप्पड़ मारे और कहे ..
"वह आखरी सांस ले रही थी ..
तब तू यहाँ नहीं आया.
Scenes लिख रहा था ..
अब क्यों आया है ?"

…..
I wish की जो बच गाया
वो आने वाले हर एक के गाल पर एक एक झापड़ रसीद करे.
और कहे …
“क्या जानता है तू , हमारे बारे में.
और क्यों जानना चाहता है हमारे बारे में?
आखरी ५ साल मैंने इस औरत को .. सिर्फ बिस्तर पर देखा है.
लेटे लेटे खाते .. पीते .. और …. बाकी सब करते.”

पकड़ के हमारा गिरेबान ..
वह कहे .. हम सब से .
“वह गयी तो अच्छा है
थी तब तुम कहाँ थे कुत्ते के पिल्ल्लों?
मैं खुद उसे देखने से कतराता था.
Society clean रखता था.”

"जो चली गयी .. वो गयी …
अब तुम लोग अपने अपने घर जाओ .
मेरा दिमाग मत खाओ .
मुझे उस औरत का मातम मानना है जिसके साथ ३० बार सुख दुःख देखे
और आखरी ५ बरस … उसने अकेले ही दुःख देखे.
मुझे अपने बेटे के साथ उसकी माँ की मौत का ग़म ग़लत करना है.
नासिक से बेटा wine लाया है ..
आज वही पीना है ..
जो अब मेरी door bell बजाएगा
उसकी बायको का घो."

Monday, March 7, 2011

Nakusha.. Ajeeb Nahin Lagta Yeh Naam


People watch her. They like the show. But they don't remember the title of the show.
Many elders in my society call it as "Nakusha or Nakusha datta wala show."
Strange it is.
A title that appears on screen for more than a year...
“Laagi Tujhse Lagan”
They cannot remember it easily. But name of the character Nakusha is their on the lips.
Who gave her this name? Don't know.
Nakusha means.. (I understood it this way.) Nakusha is “Na- koshi ” नकोशी... Unwanted.
Her grandmother called her Nakoshi.
Second girl child in a family of labourer/ maid.
How can she not be Nakoshi?
I sometimes feel like comparing Nakusha and Ichchha.
One how hisses and bites to protect herself and her husband. That’s Nakusha
And the other who is to be taught to hiss at the age of 22. That’s Ichchha.
Nakusha... Ajeeb nahin lagta yeh naam!

Sunday, December 5, 2010

KBC SEASON KHATM

Watching it on Sony.

Cannot watch it regularly.

Amit jee's interaction with contestants is amazing.

How can he manage it?

ek hindi teacher jo apne paas 9 chasme rakhtee hain kyonki vo kab kya bhulengi unhein hi pata nahin..

Pata nahin kaise vo itani sahajta se dusaron ke self esteem ko uncha kar dete hain.

shayad hi koi celebrity itna zameen se juda ho. Kum se kum screen appearance se toh aisa hi lagta hai.

Tuesday, November 30, 2010

No life for a writer

Two of my friend posted nice comments.

One of them is a childhood friend.

He quoted Dushyant Kumar's sher.

" Jis tarah chahe bajao is sabha mein.

Hum nahin hain aadmi hum jhunjhune hain."


It was perhaps written in context with politics.

But I think its true for Tv channels also.

Few channels, few creatives and few EPS think we are JHUNJHANE...

JAB MARJI KARE JAGAO AUR BAJAO.

But Abbas adds and i completly agree with him.

"This is corporate world banbhu.
Writing or no writing,it is just the same.We all are numbers not people."

AND ITS TRUE FOR TV.

Its not about writing ..its about numbers.

And I am just a number.

Any one can come and replace me at any time and still i write.

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Another friend... a successfule movie writer commented:

"Writing is a NO WIN situation." Jeffery Boam (Hollywwod writer of Indiana Jones / Lethal Weapon

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Yes ... films i have not written.

TV ... and theatre ... I have.

and theatre is the best for writer..

If one is lucky one gets Utaran and Lagi Tujh se lagan...

And even if one tries his best Swarg turns out to be nark.

No one can save a show which has no conviction of story telling..

A conviction can make Amar Akbar Anthony also a hit.

Baki toh raam hi rakhe

Sunday, November 28, 2010

NO LIFE FOR A WRITER IN TV

I am a machine.

I obey.

I write.

Machines are stationary.

So I am.

Machines function efficiently.

Machines don't express emotions.

Machines can be replaced.

Production can not be stopped.

When will I be replaced?

Let me know my lifetime.

I want a peacful professional death.

Imagine.........Imagine.

Just out of the worst dream.

Well machines dont say..

You too Brutus!!!

good thing is

Brutus ke apne haath bhi bandhe hain.

vo ab kuchh nahin kar sakta.

Why am i writing this?

Monday, September 20, 2010

घर ख़रीदा है.

छत कितनी है सर पर?
और ज़मीन कितनी पाँव के निचे?
कब्र कैसी होगी इस घर के आँगन में?
Horizontal ya vertical?

Kitchen सजाया है.
सब्जियां हो या मुर्गियां
कटेंगी turn by turn.
खुशियाँ साथ रहने की, न रहने की
आएँगी turn by turn.

घर ख़रीदा है.
कोई ख्वाब खरीद लेते तो अच्छा था.
ख्वाब में होता सब खुला खुला और
एक दूजे में गडडमगडड
Montage या jump cut.
क्या square foot है ख्वाब का भाव?